जैसा कि आप और हम अच्छे से जानते आज का युवा भटकाव के रास्ते पर चल पड़ा है वो जानता ही नही कि क्या सही है और क्या गलत ? संस्कारवान होना तो दूर की बात है आजकल का युवा संस्कार होते क्या है ? ये भी भूल गया है।डिजिटल तकनीक का इतना कायल हो गया है कि विदेश मे रहने के बाद भारत मे बुजुर्ग माँ-बाप से मिलने आने के लिए समय नही है तो नही है , परंतु अब तो ऑनलाइन अंतिम संस्कार करने के बाद अस्थियां भी कुरियर से मंगाता है। माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यो को भूल ही गया है।
समाज के बीच रहकर भी समाज से टूटता जा रहा है। समाज के प्रति अपने कर्तव्य को अपनी जिम्मेदारी को समझकर भी समझना नही चाहता है। दिन रात बढ़ते अपराधों के बारे मे सुबह वो चाय की चुशकी के साथ बात करता है, पर अगले ही पल सब भुलाकर अपने काम पर निकल पड़ता है । जैसे कुछ हुआ ही नही। निर्भया,उन्नाव जैसे भयंकर से भयंकर अपराध समाज मे हुए और एक दिन चर्चा और अफसोस के बाद अपनी दिनचर्या मे, क्लब पार्टी मे, नशे मे डुब जाता है.…अब बात नशे की चल ही पड़ी है तो यहा ये भी कहना चाहूँगी कि हमारा युवा ऐसे ऐसे नशे मे दिन रात लिप्त होता जा रहा है की खुद कहा है ? क्या कर रहा है ? ये भी भुल बैठा है।किसी जमाने मे यदि बेटा बीडी-सिगरेट भी अगर पीता था तो अपने से बडो से छिपकर पीता था परंतु आजकल सामने तो सामने साथ बैठकर पीने मे भी शान समझता है। और रही सही कसर इस फोन के नशे ने भी पुरी कर दी है । इस फोन नामक नशे मे युवा इतना दिग्भ्रमित हुआ है कि एक नौवीं क्लास मे पढ़ने वाली बेटी को जब एक पिता फोन का इस्तेमाल कम करने का कहता है तो वो बेटी अपने पिता को जान से मार देती है।उसे समझ भी नही आया की वो कर क्या रही है ? मै व्यथित और चिन्तित हूं ये सब सुनकर और देखकर कि हमारी युवा पीढ़ी किस ओर जा रही है ? इनको देखने के सिवाय हमें कोई रास्ता ही नजर नहीं आता । हम कुछ करना चाह कर भी कर नही पा रहे है। अपनी ही दुनिया मे मस्त आजकल के युवा इतने भटक गये है कि सही राह दिखाना हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा है । कर्तव्यों से विमुख और आधुनिकता में घिरे युवाओं की बदौलत हर शहर मे वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ गयी है, जहाँ दुखी और अपनो से टुटे हुए परिजन एक दुसरे का सहारा बनकर समय व्यतीत कर रहे है।हमे सोचना,समझना होगा और रोकना होगा कर्तव्यों से दुर होते हमारे युवाओ को क्योंकि अभी उनको चकाचौंध से भरी जो दुनिया दिखाई दे रही है वो कुछ समय का छलावा है।अगर आज उनको कर्तव्यबोध नही हुआ तो कल वो भी वही होगे जहाँ उनके परिजन आज पहुंच गये , उनके ही संस्कार विहीन आचरण के कारण।हमारे युवा हमारा आने वाला कल है और जब आज संवरेगा तभी तो हमारा कल संवरेगा । हमारे कल को बेहतरीन बनाने के लिए हमे सकारात्मक प्रयास करने होगे ताकि हमारा भटका हुआ युवा समाज की मुख्य धारा से जुड़ सके।
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