नशाखोरी की रनबेरी जोरों से जारी, रोकथाम जरूरी
(हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार)
दिल पे नशा ये भारी है, सबसे बडी बीमारी है। कुछ पल का नशा सारी उम्र की सजा। फिक्रमंदी बैगर अच्छे-अच्छों को नशे का नशा हो जाता है। नशा चीज ही ऐसी है भाई! फिर क्यों नशे का नशा ना हो। गुमानी में जिधर देखो ऊधर नशा ही है। रसास्वादन के चस्के से चिपके रहना हर कोई चाहता है। आगोश में दिल का दस्तुर, दौलत का गुरूर, शिरत का शुरूर, ताकत का मगरूर और सुरत का फित्तुर सिर चढकर बोलता। है। बरबस नशाखोरी की मदहोशी में अंगूर की बेटी हल्क में उतर जाए तो समझो सारी दुुनिया टल्लियों की मुठ्ठी में। मिला मौका हाथ से क्यों जाने दे, क्योंकि ये कोई दबाने की नहीं बल्कि रौब-रूदबे दिखाने की धधक का प्रदर्शन जो है। साथ बहाना भी बखुब है जनाब! मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूँ गम भुलाने को या मजे लेने को जो कुछ भी कहलिजिए मर्जी अपनी-अपनी। किन्तु खुदगर्जी में यह याद अवश्य रखे कि नशा, शान नहीं वरन् नाश का सबब है।
बदस्तुर, देश में नाबालिगों का नशे के प्रति बढता आकर्षण अंत्यत दुखदायी, चिंताजनक व विनाशकारी है। जिसकी कल्पना मात्र से ही रूहूं कांप जाती है। मामला बहुत पेचीदा है। समस्या देखने में छोटी व सोचने में बडी और निपटारे में तगडी है। वजह साफ है लाखों जिंदगियों के साथ घरों के घर बर्बाद होते जा रहे है। इसके कार्य-कारक और जिम्मेदार हम अपने आपको मानते है या नहीं यह यक्ष प्रश्न आज भी निरूत्तर बना हुआ है। आह्लादित फैशन व व्यसन से तरबतर आधुनिक युग में शादी-बरात का शराबी फुहड नाच हमारी सामाजिक मान-मर्यादा को जार-जार कर रहा है। बावजूद हम शान से नशे के नशा का बेशर्मी से लुत्फ उठा रहे है। जानते हुए कि नशा स्वंय के साथ परिवार, समाज और पूरे देश को निगल कर तबाह करते जा रहा है बाबजूद नशाखोरी की रनबेरी जोरों से जारी है। इसका रोकथाम जरूरी है।
गौरतलब हो कि नशे का आगाज आमतौर पर दोस्ती-यारी के कस्में वादों की मजबूरियोंं की बैशाखी पर कमसिन उम्र अच्छे-बुरे की सोच से बेखबर महफिल की खुशी और मर्दानगी के वास्ते होता है। जो आगे चलकर नासुर लत बनकर आदतन अपराधी बनाने की कब्रगाह बन जाती है। निकला नशीला बारूद नशे की गुलामी में जकडकर सामाजिक-आर्थिक-मानसिक और शारीरिक तौर पर नशेडी को अपना निवाला बना लेता है। जो अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फसकर आजादी की तमना लिए जमींजोद होकर रह जाता है। बजाए नशा का चलन घटने के अफरातीन शानो-शौकत से बढते ही जा रहा है। अफरातफरी में कारगुजारी वाले नशे के कारोबार ने दिनदुनी रात चौगनी तरक्की कर सारी दुनिया में अपना डंका बजा दिया। तभी तो जिसे देखो वह एम्पोर्ट और एक्सपोर्ट की दुहाई देते नहीं थकता। तरफदारी में एक का दो करने की जुगत में नशीले घातक पदार्थो के अंदर बाहर का खेल चरम पर है।
जहां तक बात है, नशे के रूप की तो सौदागरों ने यहां भी बाजी मारी है। इनके तरकश के तीरों में पुरातन शराब, तम्बाखू, बीडी, सिगरेट, हुक्का, गांजा, अफीम, चरस के साथ ताजातरीन कोकिन, ब्राउन शुगर, हेरोइन, गुटका पाऊच, फेवीक्विक, सेलुसन, पेट्रोल, नींद-खांसी की दवायें और सर्प विष इत्यादि बेशुमार मादक असला है। उन्माद में नशे की लत जो जारी है ये बहुत ही अत्याचारी है, मेलें लगते है शमशानों में आज इसकी तो कल उसकी बारी है। ऐसे में चारों तरफ है, हां-हां कार बंद नशे का हो बाजार। उम्मीदें हो रही तार-तार और नशा बनते जा रहा है विकराल व्याभिचार, चंगुल में फस गए बेगुनाह बीमार हजार। अलबत्ता परहेज करने के सरकारों ने तिजोरी भरने खुलेयाम बनाऐ रखे है ठेकेदार।
सरोकार, अब अभिशाप बन चुके नशे को नाश करने जिदंगी को हां और नशा को ना हर हाल में कहना ही पडेगा। वरना घर बिखरते, बच्चे बिछडते, मांग उजडते, जहर फैलते, रोगी बनते, सम्मान घटते और भविष्य पिछडते देर नहीं लगेगी। बेहतर नशे को छोडो, रिश्ते जोडो और बीमारी को लताडो। तभी हर दिल की अब ये चाहत नशा मुक्त हो मेरा भारत सार्थक होगी।
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
Journalist, Writer & Consultant- Legal, Human rights, Skill Development, Child Welfare, Education, Rural Development etc.
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