नभ के बादल घुमड़ घुमड़ जब
आसमान पर छाये थे
कुछ ऐसी ही किस्मत लेकर
हम दुनिया में आये थे
हम तो अपनी आशाओं में
कुछ सपने बुनकर लाये थे
सपनों की उस बगिया के
कुछ फूल चुनकर लाये थे
गम नहीं इस बात का
कुछ दर्द यहाँ पर पाये थे
हम उनकी वो सौगातें
दिल में अपने छुपाये थे
रास्तों की भूल भुलैया
देख जरा चकराए थे
उम्मीदों का दामन थामे
हम आगे बढ़ आये थे
पं संजय शर्मा 'आक्रोश'