Dreaded Monster

Agastya the brave soldier

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19 Jun '24
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एक समय की बात है। एक राज्य था 'आदिपुर' । आदिपुर बांस के जंगल से घिरा हुआ था। आदिपुर एक ताकतवर और कुशल राज्य था। राजवर्धन आदिपुर का महाराजा था। राजवर्धन और आदिपुर की प्रजा तंत्र मंत्र में विश्वास रखती थी, और अंधविश्वासी थी। राजवर्धन के बाद उनका बेटा जयवर्धन आदिपुर का राजा बना । जयवर्धन अंधविश्वास को नही मानता था। जयवर्धन का सेनापति का नाम अगस्त्य था। जयवर्धन और अगस्त्य बहुत अच्छे मित्र भी थे, और दोनो एक ही विचारधारा के थे। एक दिन आदिपुर के एक किसान  पर कोई हमला कर देता है। उस किसान का नाम दीपक था। दीपक से मिलने जयवर्धन जाते है । दीपक जख्मी हालत में था उसके हाथ पैरो पर किसी नुकीली चीज की खरोचें थी। जयवर्धन दीपक से पूछते है - यह सब कैसे हुआ।
दीपक  बहुत डरा हुआ था। 
दीपक भय भरे स्वर में कहता है - वो...वो बहुत भयानक था ।
जयवर्धन असमंजस  में - कौन?
दीपक - राक्षस ! वो राक्षस था , उसकी आंखे चमकीली और भयानक थी। मैं जैसे- तैसे अपनी जान बचा कर आया ।
जयवर्धन - देखो यह तुम्हारा कोई वहम होगा। राक्षस जैसा कुछ नही होता है, तुम आराम करो वो कौन था मैं देख लूंगा।
जयवर्धन दीपक की झोपड़ी से बाहर आता है और अगस्त्य से कहता है - वो कोई जंगली जानवर होगा। तुम सिपाही को जंगल में भेजो और वहा कोई खतरनाक जानवर हो तो उसे मार दो, मैं नहीं चाहता कि वो और किसी को कोई नुकसान पहुंचाए।
अगस्त्य सिपाहियो को जंगल में उस जानवर को मारने भेज देता है लेकिन उन्हें वहा कोई खतरनाक जानवर नहीं मिलता है।
दीपक के साथ हुआ हादसे  की बात लोगो में फेल चुकी थी। 
अब लोगो को भय हो गया था की आदिपुर में कोई राक्षस आ गया है। रात्रि में लोग भयभीत होकर जल्दी घरों में चले जाते थे ।
कुछ दिनों के बाद एक के बाद एक घटनाएं होने लगी ।
राक्षस का आतंक बढ़ने लगा था । जयवर्धन हो रही घटनाओं से परेशान हो गए थे कई सिपाही भी घायल हो गए थे जिस कारण से सिपाहियो में भी भय बढ़ने लगा था ।
जयवर्धन अगस्त्य से कहते है - जाओ और अगर सच में कोई राक्षस है तो उसे मार डालो ।
अगस्त्य उस राक्षस को मारने के लिए चला जाता है ।
सात दिन के बाद आदिपुर के लोगो में यह घोषणा कर दी जाती है ,की अगस्त्य ने राक्षस को मार दिया है। अगले दिन अगस्त्य महल पहुंच जाता है । अगस्त्य अपने साथ एक ताबूत लाया था। जिसमे उस राक्षस की लाश थी। पूरे आदिपुर के सामने उस ताबूत को जला दिया जाता है। राक्षस का दहन होते देख सभी लोगो में खुशी का माहोल बन जाता है। लोग अगस्त्य और जयवर्धन की जयकार करते है । 
राक्षस के दहन के बाद रात्रि में जयवर्धन महल के बगीचे में बैठे रहते है, तभी अगस्त्य जयवर्धन के पास आता है।
जयवर्धन - आओ अगस्त्य! आदिपुर के वीर योद्धा आओ।
अगस्त्य - महाराज की जय हो।
जयवर्धन - अगस्त्य मुझे लगता था कि राक्षस नहीं होते है, पर तुमने सच में एक राक्षस को मार दिया।
अगस्त्य - महाराज आप सही है राक्षस नहीं होते है ।
जयवर्धन - क्या? पर तुमने तो राक्षस को मारके सबके सामने जलाया है।
अगस्त्य - ताबूत में बस लकड़ियां थी, कोई राक्षस नहीं था।
जयवर्धन - पर! यह सब हमले कौन कर रहा था।
अगस्त्य - भ्रम।
जयवर्धन - भ्रम ! पर कैसे?
अगस्त्य - मैं लोगो के बीच भेष बदल कर रह रहा था। मैंने इन  सात  दिनों में देखा की लोगो में राक्षस को लेकर इतना भय था, की लोग शाम को जल्दी घरों में चले जाते थे। और किसी काम से समूह बनाकर ही निकला करते थे। 
लोगो में भय इस कदर था की लोग छोटी - सी आहट से ही वो इतना भयभीत हो जाते थे,
की भय में लोग बस जान बचाने के लिए भागने लगते थे।
और भगदड़  में लोग बांस के पेड़ो से टकराते थे ,गिरते थे। जिससे लोग ज़ख्मी हो जाते थे।
इन सात दिनों में जितनी भी घटनाएं हुई सब इसी प्रकार हुई थी।
और लोग किसी भी छोटे जीव - जंतुओं की परछाई देखकर भयभीत हो जाते थे ।
अफरा - तफरी में जीव - जन्तु घबराकर आक्रमक हो जाते थे ,जिससे कई लोगो को खरोचे आ जाती थी।
महाराज जितनी भी घटनाएं हुई सभी रात्रि में हुई ।
अंधकार में कुछ भी साफ दिखाई नहीं देता था जिससे लोगो को कुछ समझ नहीं आता और लोग राक्षस के भ्रम से भयभीत हो जाते थे।
दीपक ने सिर्फ चमकती आंखे देखी जो किसी भी जानवर की हो  सकती थी क्योंकि जीव - जन्तु की आंखे अंधकार में चमकती है।
और राक्षस को किसी ने भी नहीं देखा ।
जयवर्धन  - पर ताबूत को सबके सामने जलाने का क्या अर्थ था।
अगस्त्य - अगर लोगो को में यह बोलता की राक्षस नहीं है तो शायद ही कोई यकीन करता , इसलिए मैं सबके सामने ताबूत जलाया ताकि लोगों के भ्रम को खत्म करने के लिए । ताकि उन्हें लगे की राक्षस मर गया।
जयवर्धन - मुझे गर्व है की हमारे पास एक ऐसा योद्धा है, जो साहसी और वीर होने के साथ - साथ बुद्धिमान भी है।

Category:Stories



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Written by Mhod Habib

21 years old Rajasthan, india Writing is my life