शीर्षक: इंडिया नहीं बनाओ
मैं भारत हूं, ख्याति मेरी, धूल में नहीं मिलाओ
भारत ही रहने दो मुझको, इंडिया नहीं बनाओ
सकल विश्व में ज्ञान पारखी मैं ही माना जाता हूं
मुझे त्याग कर मेरे प्यारों, नहीं औरों को अपनाओ।।
कहने को आजाद हुऐ, पर परतंत्रता से जकड़े हो
सीख फिरंगी सभ्यता को, बड़ी शान से अकड़े हो
भूले सद व्यवहार और अपनाया नूतन जीवन
छोड़ राह पुष्पों से पुरित, कांटों की क्यूं पकड़े हो।।
मैं भारत हूं, अपनी पीड़ा मैं किसको आज सुनाऊं
देख बदलता रूप मेरा, मैं मन ही मन घुटता जाऊं
धन धान्य और संपन्नता का मुझमें विपुल भंडार है
पर देख पलायन अपनो का, मैं खुद को कमतर पाऊं।।
मैं भारत हूं, मेरी आभा से सकल विश्व दिव्यमान है
चार वेद और पुराण अष्टदश, करते मेरा गुणगान है
तुम क्यूं व्याकुल फिरते हो क्या तुमने नहीं पाया?
बिसराकर अपनी संस्कृति, तुमको हुआ अभिमान है।।
स्वरचित
योगी रमेश कुमार 'ओजस्वी'
जयपुर, राजस्थान
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