चल तो चुका हूं मंजिल के लिए,
काफी दूर भी आ चुका हूं
लेकिन और कितना चल पाऊंगा ?
पता नहीं।
अब पहले जैसा जोश और उत्साह भी नहीं है,
कुछ नया करने का मन भी नहीं है
मैं अपने जुनून की आग को सफ़लता की मशाल में बदल भी पाऊंगा या नहीं?
पता नहीं।
अब इतनी ऊर्जा और साहस नहीं है कि वापस लौट जाऊं,
इतना कुछ लगा जो चुका हूं इस यात्रा में,
आखिर क्या हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा हूं?
पता नहीं।
बस इतना पता है कि इस लक्ष्य को हासिल करने में अपनी सारी ताकत झोंक दूंगा,
आगे बढ़ने के लिए अपनी सारी परेशानियां पीछे छोड़ दूंगा,
अब ये मुश्किलें मुझे रोक भी पाएंगी या नहीं?
पता नहीं।
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