जीवन में श्रेष्ट आचरण करे।

छोटे से लोभ के कारण जीवन बिगड़ सकता है।

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27 Jun '24
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आप सभी को नमस्कार। मैं हूँ जितेश वोरा।  किसी गांव में एक पंडितजी रहा करते थे। बड़े विद्वान् ,चारो तरफ उनकी ख्याति थी। वेद , पुराण , शास्त्र सभी धर्मग्रन्थ पर उनकी अच्छी पकड़ थी। दूर दूर से लोग उनको सुनने आते ,उनसे मिलने आते। आसपास के सभी गाँवो में वो बड़े प्रसिद्द थे। एक बार उनके पास के गांव में वहां एक बड़ा मंदिर था। उनके पुजारी का एक दम निधन हो गया। तो उस गांववालों ने यह तय किया की जो पास के गांव में पंडितजी है ,उनको इस मंदिर का पुजारी बना देते है। पूरा गांव सहमत हो गया। उनका अच्छा नाम था। उन पंडितजी को न्योता भेजा गया।

जिस दिन पंडितजी उस गांव के लिए रवाना हुए। वो अपने गांव से बस में बैठे। बस में बड़ी भीड़ थी। अपनी सीट पर बैठ गए। थोड़ी देर में बस का कंडक्टर उनकी टिकिट बनाकर पंडितजी को देकर चला गया। जब पंडितजी ने पैसे गिने तो उन्हें लगा की जो कंडक्टर ने वापस पैसे दिए है ,वो ज्यादा दे दिए है। उस समय पंडितजी ने सोचा ,चलो थोड़ी देर बाद में दे देंगे। अभी बस में भीड़ बहुत है। लेकिन धीरे धीरे पंडितजी के मन में कुछ विचार चलने लगे। उन्होंने कहा की मैं इतना परेशान क्यों हो रहा हूँ ? इतने ज्यादा तो पैसे दिए नहीं और वैसे ही यह बस वाले लोगो से ज्यादा पैसे लेते है। इतनी कमाई बहुत ज्यादा होती है।

मैं इन ज्यादा पैसो को मंदिर में चढ़ा सकता हूँ। किसी गरीब की मदद कर सकता हूँ। इसी तरह के विचार उनके मन में चलते रहे। थोड़ी देर बाद जिस गांव उनको जाना था ,वो जगह आ गई। वो बस से उतरने लगे। उसी समय बस के कंडक्टर ने उससे जय राम जी की की। यह सुनते ही पंडितजी ने अपनी जेब में हाथ डाला और जो बाकि के पैसे थे ,उस कंडक्टर को देते हुए कहा की भाई ,तुमने मुझे ज्यादा पैसे दे दिए।

कंडक्टर हँसा और उसने कहा आप वही पंडितजी है ,जिनकी ख्याति दूर दूर तक है ,और आज आप इस गांव में मंदिर के पुजारी बनने के लिए आये है। पंडितजी उसे हैरानी से देखने लगे। उसने कहा , मुझे माफ़ करे। यह जो पैसे मैंने आपको ज्यादा दिए थे। वो जान बूझकर दिए थे। आपको देखने के लिए। मैंने आपका बहुत नाम सुना था। आपकी बहुत ख्याति सुनी थी। मेरा बड़ा मन था। आपसे मिलने को। मुझे लगा की आज आप और मैं अनजान है। तो सोचा की अगर मैं आपको ज्यादा पैसे दू। तो आप क्या करते ? मन में आपकी परीक्षा लेने की बात आई ,और मैंने आपको ज्यादा पैसे दिए। जैसा आप बोलते है ,जैसा आपका जीवन है। वैसा ही आपका आचरण है। मैं आपसे एक बार पुनः माफ़ी मांगता हूँ। यह कहकर बस का कंडक्टर अपनी बस में चला गया। लेकिन पंडितजी अपने मन ही मन बड़े शर्मिंदा और पसीना पसीना हो गए। उन्होंने अपनी आँखे बंद की ,और ईश्वर को धन्यवाद कहा की आज तुमने मुझे बचा लिया।

मेरा पूरा जीवन दांव पे लगा लिया था। जो मेरे जीवन की कमाई थी ,वो आज दांव पर लग जाती। मुझे माफ़ करना। आपने अपने जीवन में कई बार इस तरह का अनुभव किया होगा। किसी दुकानदार ने , किसी फल वाले ने , किसी सब्जी वाले ने और किसी मिलने वाले ने या तो जान बूझकर या अनजाने में जब आपको पैसे ज्यादा दिए होंगे ,तो आपके मन में भी कुछ इस तरह के विचार चले होंगे। या हो सकता है ,आनेवाले समय में इस तरह का अनुभव हो। लेकिन जो आपकी पूरी जीवन की कमाई है। जो आपका चरित्र ,जो आपके जीवन का आचरण है। वो अगर श्रेष्ट है ,तो आप वही करेंगे ,जो पंडितजी ने किया। जब भी व्यक्ति के मन में इस तरह के विचार आते है। तो छोटे से लोभ के कारण वो अपने जीवन भर की कमाई को दांव पर लगा देता है ,और मिलता कुछ भी नहीं। एक छोटा सा लोभ जो उनके जीवन को बिगाड़ सकता है।

अगर वो इन चीजों से दूर हो जाते है ,तो उनका जीवन बन सकता है। यह आपके ऊपर है की आप किस तरह का आचरण करते है। ईश्वर कई रूपों में आपकी परीक्षा लेता है। इससे बचने का प्रयास करे। उस समय अपने आपको मजबूत रखे। जैसे आप है ,वैसे आप हमेशा रहे।                                     

 लेखक : - जितेश वोरा 

Category:Personal Development



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Written by jitesh vora

स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक :- जितेश वोरा