क्या तुम नहीं जानते

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28 May '24
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क्या तुम नहीं जानते

क्या तुम नहीं जानते 

पर्वतों के पीर को,

व्याकुल संसार के 

संपन्न तस्वीर को। 

क्या तुम नहीं जानते

जलती हवा के शरीर को ,

जो दोड रहा है गाड़ियों के

पीछे पाने अपने तकदीर को ।

क्या तुम नहीं जानते

 पानी कि गरीबी को ,

जो मांग रहा साफ कपड़ा 

मिटाने तन की फकीरों को ।

क्या तुम नहीं जानते

आसमान के काले रंग को ,

जो ढूंढ रहा है नीला सूरज 

बुला रहा है अपने पतंग को।

क्या तुम नहीं जानते

कमजोरी से कापते शरीर को ,

 शुद्ध अनाज और अशुद्ध अनाज 

के बीच मिटाना चाहता लकीर को।

बिंदेश कुमार झा

Category:Poem



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Written by BINDESH KUMAR JHA

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