मत समझो उन्नीस किसी को

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01 Jul '24
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मत समझो उन्नीस किसी को 

है हर व्यक्ति विजेता।

अगर ठान ले, यत्न करे तो 

बन सकता युगचेता।।

 

सबमें प्रतिभा है, पौरुष है 

सबमें शक्ति सनातन।

बावन से विराट बन सकता 

औ' विराट से बावन।।

 

पड़े जरूरत हनूमान इव 

सिन्धु लांघ जाता है।

स्वर्णमयी लंका में पल में 

आग लगा आता है।।

 

जन-जन में प्रसुप्त प्रतिभा को 

आओ आज निखारें।

और भाग्य भारत माता का 

मिलकर सभी संवारें।।

 

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi