रुको मत सफलता मिलेगी

कदम बढ़ाते रहिए...

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06 Jun '24
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विश्व में ज्ञान अपरिमित है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। इसके बाद भी हम अपने आपको सबसे बड़ा बुद्धिमान मानते हैं तो यह हमारी एक ऐसी भूल है, जिसे हम पहचानते ही नहीं। जिसने भी इस भूल को सुधार लिया उसके लिए ज्ञान प्राप्त करने के रास्ते खुलते चले जाएंगे। आज हम कोई भी कार्य करते हैं तो उसके बारे में सबसे पहले यही विचार करते हैं कि इससे क्या मिलेगा। भगवान् कृष्ण ने गीता ज्ञान में कहा है “कर्मण्ये वाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन” यानी कर्म करने का अधिकार तुम्हारा है, फल देने का अधिकार मेरा है। इसका तात्पर्य यही है कि हम कर्म के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार नहीं करते, उसकी परिणति के बारे में चिंतन करने लगते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि हम पहले कर्म के बारे में गहन चिंतन करें, उसके बाद लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में एक एक कदम बढ़ते जाएं। इसमें न तो आपको अपनी ओर से गति बढ़ानी है और न ही गति को कम करना है। कार्य जैसी गति चाहता है, वैसी गति पहले से निर्धारित कर लें। फिर देखिए आपको काम करने में आनंद भी प्राप्त होगा और आपके कदम मजबूती से लक्ष्य की ओर जाते हुए दिखाई देंगे।
लेकिन वर्तमान की विसंगति यही है कि कर्म से पहले परिणाम की चाह रखने वाला व्यक्ति अपने कदमों को पीछे की ओर खींच लेता है और वह इस कमी को अपनी कमी नहीं मानता, बल्कि अपने आसपास रहने वाले व्यक्तियों को ही अपनी असफलता के लिए दोषी ठहरा देता है। एक महान विचारक ने कहा है कि आप अपने कर्तव्य पथ पर दो कदम बढ़ाओगे तो दो कदम आगे का स्पष्ट मार्ग आपको दिखाई देगा… फिर उसके बाद जैसे ही आगे बढ़ोगे, आपको फिर आगे का रास्ता दिखाई देगा। ऐसे ही बढ़ते जाओगे तो यकीन मानिए आप सधे हुए कदमों से लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। हालांकि आज का युवा बहुत जल्दी लक्ष्य पाना चाहता है, यह मार्ग अत्यंत जोखिम भरा है। बीच में खतरे की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे कोई व्यक्ति किसी मकान की छत पर जाना चाहता है तो उसे छत पर जाने के लिए सबसे पहले सीढ़ी देखनी होगी और उससे एक एक कदम चलकर चलकर आसानी से छत पर पहुँच जाऐगा। अगर वह बिना सीढ़ी के छत पर जाने के लिए प्रयास करेगा तो उसे कम से कम दस फ़ीट ऊँची छलांग लगानी होगी, उसकी छलांग लगाने शक्ति चार या पांच फ़ीट ही है तो स्वाभाविक ही है कि उसकी शक्ति का क्षरण तो होगा ही, लक्ष्य भी नहीं मिलेगा और शरीर को भी नुक्सान पहुंचाएगा। बस यहीं से निराशा उसके मन में स्थापित होती चली जाएगी। इस निराशा की अवस्था को रोकने के लिए हमें अपने आपको किसी छोटे से कार्य के लिए तैयार करना होगा। इससे कार्य के प्रति आपकी रूचि बढ़ेगी। यही रुचि आपके जीवन को व्यवस्थित करेगी। जब जीवन व्यवस्थित होगा तो उसका प्रभाव आपके हर कार्य में दिखाई देगा, चाहे वह कपड़े पहनने का तारीका हो या फिर आपके खाने और बोलने का अंदाज हो, सब व्यवस्थित ही रहेगा। और इसी का प्रभाव आपके आसपास रहने वाले लोगों पर भी पड़ेगा।
 

Category:Personal Development



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Written by Suresh Hindusthani

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