कोई शिव का आराधक है
आराध्य किसी के लिए शक्ति
कोई जपता है राम, श्याम
कोई गणपति की करे भक्ति
कोई रहता सानंद सदा
कोई रहता है सदा खिन्न
हर कलमकार की दृष्टि भिन्न
कोई फक्कड़ बनकर जीता
कोई पाना चाहे समृद्धि
कोई उपराम प्रशंसा से
कोई पाना चाहे प्रसिद्धि
कुछ को दुर्गन्ध सताती है
कुछ को लगती ही नहीं घिन्न
हर कलमकार की दृष्टि भिन्न
कुछ राजनीतिक के दादुर हैं
कुछ रहते उससे सदा दूर
कुछ दुराग्रही मर-मिट जाते
पाना चाहें जन्नती हूर
सबकी समदृष्टि नहीं होती
नाहक आपस की टिन्न-फिन्न
हर कलमकार की दृष्टि भिन्न
निन्दा करता है एक अगर
दूसरा प्रशंसा करता है
जो पाप एक को लगता है
दूसरा न उससे डरता है
जो विवश दूसरों को करते
वे कलमकार हैं याकि जिन्न
हर कलमकार की दृष्टि भिन्न
महेश चन्द्र त्रिपाठी
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