हाथरस में मौत का सत्संग
उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले में एक सत्संग के दौरान हुए हादसे ने एक सैकड़ा से अधिक लोगों को असमय मौत की नींद सुला दिया। यह हादसा क्यों हुआ… इसकी प्रारंभिक जानकारी में यही सामने आया है कि सत्संग के दौरान उमड़ी भारी भीड़ के चलते भी आयोजकों ने समुचित इंतजाम नहीं किए… कम इंतजाम के चलते हुई लापरवाही के चलते इतना बड़ा हादसा हो गया। आयोजकों को लेकर कई प्रकार के सवाल उठ रहे हैं? जिसमें पहला सवाल तो यही है कि जब स्वनाम धन्य एक व्यक्ति ने भोले बाबा का नाम धारण करके जनता को अपनी भक्ति में लीन कर दिया, तब यह क्यों नहीं देखा गया कि यह किस आध्यात्मिक धारा को अपना रहा है। अभी तक जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक कथित बाबा के कई अनुयायी हैं, जिसमें सभी वर्गों के व्यक्ति शामिल हैं। इसलिए यही कहा जा सकता है कि हिन्दू यह कथित सांसारिक व्यक्ति हिन्दू धर्म को समझता ही नहीं है। सवाल यह है कि अगर यह संत होता तो भारत में संत बनने की कुछ मर्यादा है। उन्होंने उन मर्यादाओं का पालन कतई नहीं किया। हिन्दू संत सूट और टाई कभी नहीं पहनता। इसलिए इसे संत कहना संत का अपमान करना ही है।खैर… यह तो तय हो गया कि यह संत नहीं है। जब यह संत नहीं है, तब इसके द्वारा किए गए आयोजन को सत्संग कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि सत्संग में सत्य का सानिध्य किया जाता है। अगर यह धार्मिक आयोजन होता तो कोई धर्म का कार्य भी होता।
आज हाथरस के इस आयोजन पर अनेक प्रकार के सवाल उठ रहे हैं… उठने भी चाहिए… क्योंकि भारत की जनता को मौत के मुंह में धकेलने वाले ऐसे व्यक्ति केवल अपने लिए वैभव जुटाने के लिए ही कार्य करते हैं, इन्हें जनता से कोई सरोकार नहीं होता। अगर होता तो वे मुसीबत आने पर जनता के बीच खड़े रहते, लेकिन घटना के बाद वे फरार हो गए। फरार होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सारा दोष इन्हीं का है। अगर नहीं तो फिर गायब क्यों हो गए…। अपने भक्तों को मरता हुआ क्यों छोड़ गए। कहा जाता है कि यह कथित बाबा अपने आपको भगवान् की श्रेणी में मानता था। जबकि यह सत्य है कि कोई भी साधू संत अपने आपको भगवान से बड़ा नहीं मानता, वह तो एक सेवक की भांति भगवान की आराधना करता रहता है। इस हादसे के लिए दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देना चाहिए।
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