आओ हम ज्ञानी गुरुओं की, गुरुतर अकड़ निकालें
भाॅंति-भाॅंति के प्रश्न निरन्तर, 'उन'की ओर उछालें
पूछें उनसे दशा देश की, कैसे उन्नत होगी
जनता आफत आने पर भी, रंच न आहत होगी
करें परस्पर परिचर्चा हम, कोई युक्ति निकालें
भाॅंति-भाॅंति के प्रश्न निरन्तर, 'उन'की ओर उछालें
कैसे सबको काम मिलेगा, भागेगी बेकारी
कैसे सभी निरोगी होंगे, हारेगी बीमारी
कैसे मिटे समूल समस्या, उसे न तिल-तिल टालें
भाॅंति भाॅंति के प्रश्न निरन्तर,'उन'की ओर उछालें
कैसे संसद चले देश की, कोई पक्ष न रूठे
मर्यादित आचरण करें सब, बोल न बोलें झूठे
कैसे घटिया नेताओं की, रुकें दुरंगी चालें
भाॅंति भाॅंति के प्रश्न निरन्तर, 'उन'की ओर उछालें
कैसे पाकिस्तान चीन से, सदा के लिए निपटें
जो भी आंख दिखाए उससे, आंख मिलाएं, डपटें
पक्षपात से रहित न्याय हो, रुकें व्यर्थ पड़तालें
भाॅंति भाॅंति के प्रश्न निरन्तर, 'उन'की ओर उछालें
कैसे पर्यावरण स्वच्छ हो, दूर प्रदूषण भागे
कैसे मिटे अंधेरा कैसे, सोया मानस जागे
कैसे दीप प्रेम का सबके, अन्तस्थल में बालें
भाॅंति भाॅंति के प्रश्न निरन्तर, 'उन'की ओर उछालें
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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