वर्तमान में इंटरनेट जीवन का अनिवार्य अंग सा बनता जा रहा है….। प्रायः सभी बच्चे मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट चला रहे हैं। जिन बच्चों के पास मोबाइल नहीं होता… वे अपने माता पिता के मोबाइल का उपयोग करके नेट चला रहे हैं…। आजकल के बच्चे मोबाइल पर ही खेलते है और मोबाइल को ही पढ़ाई का माध्यम बना रहे हैं…। बच्चों का अधिकतम समय मोबाइल पर ही बीत रहा है…। इसे इंटरनेट के प्रति बढ़ती लत के रूप में ही देखा जा रहा है…। जिसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। कहते हैं कि किसी भी वस्तु का सीमा से ज्यादा उपयोग किया जाए तो वह हानिकारक भी हो सकता है…। इंटरनेट की इस लत के कारण बच्चों के बचपन की मस्ती समाप्त होती जा रही है…। बचपन की मस्ती घर में नहीं हो सकती, इसके लिए बच्चों को घर के बाहर निकलना होगा, लेकिन आजकल के बच्चे घर से निकलना ही नहीं चाहते…। वे पूरे दिन मोबाइल से चिपके रहते हैं…। यहाँ तक कि खाना खाते समय भी मोबाइल बच्चों के हाथ से छूटता नहीं है…। शोध में यह भी पता चला है कि मोबाइल स्क्रीन को लगातार देखने से आँखों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है…। इसलिए बच्चों को हर दस या पंद्रह मिनट के बाद आँखों को विश्राम देना चाहिए…।
एक शोध में पता चला है कि जो बच्चे मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट का उपयोग करते हैं…। उनके सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। वे जल्दी किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाते…। उनको क्या खाना है, इसे बताने में बहुत देर लगाते हैं…। कब पढ़ाई करना है… इसमें मन नहीं लगा पाते। जब बच्चे समय पर अपना काम नहीं कर पाते तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है…। और यही स्वभाव बन जाता है…। जो अभिभावक इंटरनेट के खतरे को जानते हैं, वे अपने बच्चे के लिए समय सीमा तय कर देते हैं…। और उसी हिसाब से बच्चे को मोबाइल देते हैं…। इंटरनेट के कारण बच्चों की स्मरण शक्ति का ह्रास हो रहा है…। इसका कारण यह भी है कि अलग अलग विषय की अनेक बातें देखेंगे और सुनेंगे तो इसका मस्तिष्क पर प्रभाव होता है…। इसलिए आज और अभी से यह तय कर लीजिए कि बच्चों को मोबाइल कितना देना है।
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