सच्चाई की दुकान में झूठ का व्यापार

मीडिया की दुनिया

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16 Jul '24
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हास्य कविता  -सच्चाई की दुकान में झूठ का व्यापार

(मेरी यह कविता किसी की भावना को आहत करने के लिए नहीं है | आजके समय में जो हो रहा है |वही मेने अभिव्यक्त किया हे | हास्य कविता के रूप में )

 

सच्चाई की दुकान में झूठ का व्यापार
सच्चाई की दुकान में झूठ का व्यापार
मीडिया की दुनिया में, आया एक नया मेला,
हर चैनल पर दिखता है, नेताओं का काला खेला।
सुर्खियाँ हैं चमकीली, लेकिन सब हैं खाली,
बिकाऊ पत्रकारों की ये, चलती है हर बाली।
एक दिन एक रिपोर्टर, बोला “सच सुनो भाई!”
नेता ने कहा, “भाई, पहले मेरी तस्वीर तो छापाई।”
चाय की चुस्की लेते, बैठते हैं सब आराम से,
सच्चाई का क्या करना, जब पैसे मिलते धाम से!
“क्यों करें हम मेहनत, जब बिकता है ये नज़ारा?”
नेता ने झूठा कहा, और मीडिया ने कहा “वाह तारा!”
खबरें बनती हैं चटपटी, जैसे पकोड़े गरमागरम,
पर असली मुद्दे सस्ते, बिकते हैं जैसे आम-फलों का हंगाम।
एक दिन चुनाव आया, सबने चलाई अपनी गाड़ी,
मीडिया ने झोंक दी, सबको अपनी अद्भुत बातों की बाड़ी।
कभी कोई नेता बुरा, कभी कोई नेता महान,
सब बिकता है यहाँ, सिर्फ पैसे के कारण पहचान।
“आपका क्या?” पूछा मैंने, रिपोर्टर मुस्कराया,
“सच बोलने की बात तो छोड़ो, तलवे चाटने से चमत्कार आ गया!
हर चैनल पर चुनावी ड्रामा, जनता पागल हुई
दिखाओ नेताओ को सबकी आत्माओ की रंगीन तस्वीरे
भले ही झूठी हों, कोई बात नहीं!
बिके हुए मीडियाकर्मियों की हंसी में छिपा राज़,
सच्चाई को छोड़कर, सबको बस चाहिए पैसों का ताज़।
खबरें बनती हैं टीआरपी के लिए, जैसे फिल्म का डायलॉग,
“क्या होता है ईमानदारी से, जब बिक जाए सबका हुनर और इमान? 
लोग सोचते हैं, “क्यों नहीं कुछ कर पाते?”
पर बिकाऊ मीडिया के आगे, बस सब चुप रह जाते।
मीडिया के बाजार में, सबकुछ बिकता है,
सच्चाई की दुकान पर, बस झूठ ही बिकता है।
चैनल वाले बोले, "आ जाओ, खबरें सुनाओ,"
पैसे मिलेंगे, बस थोड़ी तड़का लगाओ।
बड़े-बड़े एंकर, माइक थामे खड़े,
सच्चाई की बात छोड़, कर रहे हैं बड़े ।
कभी क्रिकेट का मैच, कभी नेता का मेला,
कभी चाय पर चर्चा, कभी शादी का फसाना।
“ताजा खबरें सुनिए, चौंकाने वाली हैं,”
पर असली खबरें तो, कहीं दूर छिपी हैं।
एक बार तो देखा, किसी ने कर दी हंसी,
नेता जी ने कहा, "मैं सत्य का पुजारी हूं, यह मेरी खासियत है!"
कहने लगे सब, “क्या बात है भाई,
नेता का यह डायलॉग, समझेगा कौन कोई सच्चाई?”
बिकाऊ मीडिया का ये खेल, बड़ा निराला है,
पैसे की भूख में, सब कुछ झूठा प्याला है।
खबरें बनती हैं ऐसे, जैसे हों कोई फिल्म,
आओ सभी मिलकर, करें मीडिया का जी भर कर रिमझिम।
कभी कुत्ता भौंका, कभी बिल्लियाँ म्याऊं,
मीडिया वाले तुरंत, उस पर खास शो बनाएं।
“देखिए ये घटना, ये है बहुत खास,”
फिर वही होता, सब देख लेते बस हंस के पास।
बिकाऊ मीडिया का यह चक्कर, सबको है भाता,
कोई सवाल नहीं पूछेगा, बस सब चुप रहना।
हर दिन नया मुद्दा, हर दिन नया शोर,
लोगों के बीच में, बस बढ़ रहा ये झूठा मोल ।
जब नेता जी आते, सब झुक जाते हैं,
चैनल वाले ताली बजाकर, उन्हें बुलाते हैं।
“आपकी बात सुनकर, हमें बड़ा गर्व है,”
पर जनता की सुनवाई, अब कहीं दूर है।
बिकाऊ मीडिया की यह चाल, सबको दिखती है साफ,
पर सच्चाई को ढूंढने का, नहीं कोई करता प्रयास ।
मीडिया की इस दुनिया में, चल रहा है बड़ा खेल,
पर जब जनता बोलेगी, तब आएगा असली मेल।  (रघुवीर सिंह पंवार मोबा.9754812418)

आपको यह कविता केसी लगी प्रतिक्रिया  जरुर दे | धन्यवाद जय हिन्द 

Category:Poem



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Written by Raghuvir Singh Panwar

लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम