हाल ही में नेटफ्लिक्स पर इम्तियाज अली के निर्देशन और सह लेखन में आई फिल्म "अमर सिंह चमकीला" पूरे भारत और मुख्यतः पंजाब प्रांत के मशहूर गायक , संगीतकार 'अमर सिंह (चमकीला)' की जीवनी पर आधारित हिन्दी ड्रामा है । पूरी फिल्म समाज की वास्तविकता और एक मिट्टी से उपजे कलाकार के जीवन के संघर्ष को सींचती है ....फिल्म का कोई भी दृश्य पंजाब पृष्ठभूमि की खुशबू बिखेरने से नहीं चूकता । जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही समाज और व्यक्ति के भी । व्यक्तित्व में सभ्यता के साथ साथ फुहड़ता को नकार तो कोई भी नहीं सकता पर स्वीकारते बहुत कम लोग हैं ।
"किसी भी सच का कोई भी रूप चाहे वो सुघड़ हो या फूहड़ उसे स्वीकार कर लेने की भी हिम्मत चाहिए होती है पर अफसोस समाज अपने हर रूप और हिस्से को स्वीकारने की ताकत आज भी नहीं रखता"।
फ़िल्म के कई गानों के बोल आम लोगों के जीवन को बेतहाशा जोड़ते हुए यहीं दिखातें है कि कैसे किसी कलाकार की कला और उसका जीवन बनता है; एक छोटा सा बच्चा, अपने आस पास जो होते हुए देखता है बड़ा होकर वहीं सच लिखता है और वहीं आस पास का समाज उस सच को फूहड़ता की संज्ञा दे देता है ।
अमर सिंह ने समाज को आईना दिखाने वाले गीतों के साथ साथ भक्ति गीत भी लिखे ।
संघर्ष के दिनों के दृश्य में अमर सिंह कहते हैं कि
"एक बात तो पता है मुझे कि लोग क्या सुनना चाहते हैं, उन्हें किस चीज में मजा आता है और वह मैं कर सकता हूं।"
शायद यहीं वजह है कि उन्हें पंजाब का एल्विश और हाइएस्ट सेलिंग रिकॉर्ड आर्टिस्ट के रूप में इतनी लोकप्रियता हासिल है । 80 के दशक में पंजाब में गायकी और संगीत में सबको पीछे छोड़ने वाले कलाकार का जीवन इतने विरोध और प्रतिद्वंदिता का शिकार हो जायेगा ये वाकई दुखद आश्चर्य है।
पर्दे का मुख्य आकर्षण मुझे व्यक्तिगत तौर पर अमर सिंह के स्टेज शो के ओरिजिनल क्लिप्स का इस्तेमाल और इस फिल्म के संवाद लगे ।
अंतिम रूप से एक कलाकार का उसकी कला के लिए समर्पण अभिव्यक्ति और प्रेम कितना सशक्त हो सकता है उसका अच्छा उदाहरण पर्दे के ये शब्द हैं जहां
चमकीला यानी अमर सिंह को कई धमकियां मिलती हैं पर वो गाना गाना नहीं छोड़ते और अपने दोस्त से कहते हैं -
“ये बंदूक वालों का तो काम है गोली चलाना, तो ये चलाएंगे. हम गाने बजाने वाले हैं, हमारा काम है गीत गाना तो हम गाएंगे न वो हमारे लिए रुकेंगे न हम उनके लिए. जब तक हम हैं, तब तक स्टेज पर हैं और जीते जी मर जाएं, इससे तो अच्छा है मर के जिंदा रहें.” !!
फिल्म कितनी सहजता से दर्शकों और एक कलाकार आम जनता के मन को छू सकता है ये आप खुद देख सकते हैं ।
बाकी
मुख्य किरदार निभाने वाले दिलजीत दोसांझ (अमर सिंह) और उनकी पत्नी के रूप में परिणीति चोपड़ा (अमरज्योत) ने अपना अभिनय वाकई सहजता से मज़बूत तराशा है जो सबके दिलों तक पहुंच बनाएगा इसमें कोई शक नहीं ।।