उबल रही है :- चाय या फिर यादें ☕

चाय या फिर यादें

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20 Jun '24
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आज सुबह गर्मी से थोड़ी राहत थी

अरसों बाद फिर एक बार चाय बनाने की चाहत हुई 

लोग तो चाय बनाते है स्वाद के लिए या फिर है ये कुछ लोगों की आदत भी 

मगर मैं ख्वाबों के पतीले में यादों को उबालता हूँ 

जब तक चाय बनती है अतीत को खंगालता हूँ

जैसे-जैसे ये पत्तियाँ मिश्रण में घुल-घुल कर रंग बदलती है 

हमारी बातों की वही पुरानी कश्ती एक नई दरिया में टहलती है 

गर्म होता है बर्तन की तली से ऊपर तक का मौसम और फिर ऊफान आता है 

मानों मन के भीतर भी कहीं किसी निम्नदाब के केंद्र पे तूफान आता है 

उस दौर से इस दौर तक सबकुछ घुम जाता है एक चक्रवात सा

आखिर जीवन भी तो एक बवंडर है कुछ हसीं कुछ नमी लादे बात का 

इधर मैं खोया हूँ ख्यालों में 

उधर रंग चढ़ गया है उमड़ते उबालों में 

प्रतीक्षा में है चाय

कि हम होश में आये

जागते हुए भी ख़्वाब जो देखते है 

और इस सौंधी सुगंध से अलाव सेकते है 

ख़्वाब को तो टूटना ही है एक दिन फिर चाहे वो हक़ीक़त बने 

या फिर ख़्वाब ही रहे 

पुरबा का एक झोंका रसोड़े की खिड़की को चीरता हुआ मेरे बालों को सहला गया

मानों चाय बन गई है ये याद दिला गया 

ध्यान भंग होने पर एक मुस्कान लाज़िमी थी 

चाय तो तैयार थी मगर फिर भी कोई कमी थी 

ख़ैर प्याली की तलब मिटाने को हम चाय डाल लाये है 

पर क्या खुद को उस चंद पलों के सफर से निकाल पाये है 

चलो फिर से गोता लगाते है 

लबों पे एक-एक कर चुस्कियाँ सजाते है 

हर घूँट के साथ साँसों में उनकी खुशबू पिरोते है 

जिनके नाम के साथ जगते है जिस नाम से सोते है 

ये धधकती चाय रूह तक जाते-जाते जरूर ठंडी हो जायेगी

पर क्या उस अधूरेपन की तपन को कम कर पायेगी ?

लिखेंगें फिर कभी इस अधूरी प्याली की पूरी दास्तान

जब साथ होंगें हम किसी शाम ....

इस सुबह की चाय सीने में उस शाम तक उबलती रहेगी 

रफ्ता-रफ्ता ये यादों की दरिया भी मिलन के उस सागर तक फिसलती रहेगी ।


 

लिखेंगें फिर कभी इस अधूरी प्याली की पूरी दास्तान

जब साथ होंगें हम किसी शाम ....


 

        💚

🌱SwAsh🌳


@shabdon_ke_ashish ✍️

  


 


 


 

Category:Poem



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Written by Ashish Kumar

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