2 दिसंबर 1984 की वो रात हर साधारण रात जैसी ही थी। लोग आराम से, अपने अपने घर सो रहे थे, इस उम्मीद से, कि कल सुबह वे हमेशा की तरह अपने काम पर जा रहे होंगे। भोपाल शहर में उस रात सब कुछ साधारण लग तो रहा था, लेकिन था बिलकुल नहीं। कुछ ही घंटों में कुछ ऐसा घटने जा रहा था, जो सभी शहरवासियों की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदलने वाला था। केवल कुछ घण्टों में लाखों लोगों की सांसें दम तोड़ने वाली थीं, और दुनिया देखने वाली थीं इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना को। दुनिया देखने वाली थी, भोपाल गैस दुर्घटना को !
भोपाल शहर में घटी उस औद्योगिक घटना ने लोगों को यह बात सोचने पर मज़बूर किया कि जिन कंपनियों में, जिन उद्योगों में या जिन कारखानों में वे काम कर रहे हैं, क्या वे काम करने के लिए सुरक्षित हैं?
आखिर भोपाल में उस रात क्या हुआ, कि आज भी भोपाल के लोग उसे याद कर आज भी सहम उठते हैं, आप जानेंगे इस लेख में। अतः अंत तक बने रहिये !
भोपाल शहर में एक कीटनाशक संयंत्र स्थापित था। यह कीटनाशक संयंत्र अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड द्वारा लगाया गया था, जिसकी स्थापना भोपाल में साल 1979 में हुई थी। इस फैक्ट्री में एक ख़ास प्रकार के कीटनाशक का निर्माण होता था, जिसका नाम सेविन था। इस केमिकल के निर्माण में मिथाइल आइसोसायनाईट नाम के अत्यंत ज़हरीले रसायन का इस्तेमाल किया जाता था। इसे इस्तेमाल करने का कारण था उत्पादन का खर्च। दरअसल MIC ( Methyl Isocynite ) के प्रयोग से उत्पादन में कम खर्च होता था, इसीलिए यह प्रयोग में लायी जाती थी।
2 दिसंबर से पहले भी यूनियन कार्बाइड संयंत्र में चार पांच बार ज़हरीली गैसों के रिसाव सहित अन्य छोटे-बड़े हादसे हुए थे, लेकिन कंपनी द्वारा उसे बहुत ही लापरवाही के साथ नज़रअंदाज़ कर दिया गया था।
2 दिसंबर 1983 की रात MIC से भरे हुए एक टैंक में पानी घुस गया, जिसके कारण पानी और MIC गैस में रिएक्शन होने लगा। टैंक की पाइपलाइन में जंग लगी हुई थी, जिसमें से जंग लगा हुआ लोहा भी केमिकल गैस में घुस गया। इससे टैंक का तापमान 200 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया, जिसे 4 से 5 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए था। इस कारण टैंक में दवाब बहुत बढ़ गया, और इस कारण टैंक से करीब 40 मीट्रिक टन से ज़्यादा मात्रा में MIC गैस का रिसाव हो गया। रातों-रात पूरा भोपाल की हवा में MIC और अन्य ज़हरीली गैस घुल गई थीं।
फैक्ट्री में हुए रिसाव के कारण आधी रात में लोगों को सांस लेने में तकलीफ होना शुरू हो गया। जो लोग इस गैस के संपर्क में आ रहे थे उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी, आँखों में अत्यधिक जलन और पेट दर्द होने लगा। इस गैस के प्रभाव से बच पाना लगभग नामुमकिन था, क्योकि जब ज़हर शहर की हवा में ही घुल जाए तो कैसे उससे बचा जा सकता है। जिसने उस ज़हरीली हवा में सांस ली, वह उस ज़हर की चपेट में आ गया।
सुबह का मंज़र डरा देने वाला था। शहर में हज़ारों लोगों की जान जा चुकी थी, और हज़ारों लोग अब भी तड़प रहे थे। पूरा शहर जैसे कब्रिस्तान बन चुका था। अस्पतालों में हज़ारों की संख्या में मरीज़ भर्ती होने लगे थे। आंकड़ों के अनुसार एक समय तो करीब-करीब 17000 मरीज़ों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया था।
सरकार द्वारा दिए गए हलफनामे से ये बात ज़ाहिर होती है कि इस आपदा से 5,58,125 लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से 36000 से ज़्यादा लोग आंशिक रूप से जबकि 3500 से ज़्यादा लोग स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे। इस आपदा ने केवल उन लोगों को प्रभावित नहीं किया जो उस समय जीवित थे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में भी इस दुर्घटना के दुष्प्रभाव देखे गए। दुर्घटना के बाद जन्म लेने वाले बहुत से बच्चों में स्थायी या फिर आंशिक विकलांगता देखी गयी।
ऐसा नहीं है कि इस दुर्घटना ने केवल इंसानों को प्रभावित किया था। प्रकृति पर भी इस घटना के बुरे प्रभाव देखे गए थे। शहर में मौजूद और शहर के आसपास के इलाके के बहुत से पेड़ सड़ गए थे। करीब 2000 से ज़्यादा जानवरों के शवों को विसर्जित करना पड़ा था। यह एक ऐसी दुर्घटना थी जिसका असर कई सालों तक भोपाल की हवा में बना रहा था। दुर्घटना के बाद पैदा हुए बच्चों में विकृतियां देखी गई थीं।
आश्चर्य की बात है कि विश्व की सबसे भयावह औद्योगिक दुर्घटना का ज़िम्मेदार और हज़ारों मासूम जानों के गुनहगार को कभी उसके अपराध के लिए सज़ा नहीं भुगतनी पड़ी। यूनियन कार्बाइड कंपनी के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन इस दुर्घटना के मुख्य आरोपी थे। हादसे के तुरंत बाद वो अमेरिका भाग गए। जिसके बाद भोपाल के कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित कर दिया। एंडरसन के खिलाफ दो बार वारंट भी ज़ारी किये गए, लेकिन सरकार उसे वापस भारत लाने में नाकामयाब रही। एंडरसन को अपने पूरे जीवन में इस हादसे के लिए कोई सज़ा नहीं मिली, और सितम्बर 2014 में उसकी अमेरिका में ही स्वाभाविक रूप से मृत्यु हो गई।
एक ऐसा हादसा, जिसमें लोग स्वयं को किसी भी हालत में बचाने में नाकामयाब रहे, तब कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने बिना अपनी जान की परवाह किये, हज़ारों जानों को बचाया। इनमें से एक नाम है भोपाल के तत्कालीन डिप्टी स्टेशन अधीक्षक ग़ुलाम दस्तगीर का। जब हादसा हुआ, तब उनकी नाईट ड्यूटी थी। जब गैस हवा में फैलनी शुरू हुई तब उन्हें आँखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत होने लगी। अपने रेलवे के अनुभव ने उन्हें ये बता दिया कि कुछ बहुत गलत है। स्थिति का पता चलते ही उन्होंने आसपास के सभी स्टेशनों की ट्रेनों को निलंबित करवा दिया। इसके साथ ही स्टेशन पर खड़ी गोरखपुर-कानपूर एक्सप्रेस जो कि यात्रियों से पूरी तरह से भरी हुई थी, उसे वहां से तुरंत रवाना करवाया। इस तरह कई जानें ख़त्म होने से बच पाई। उन्होंने कण्ट्रोल रूम से रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को सतर्क किया और रेलवे सेवाएं स्थगित करने कहा। उस समय रेलवे स्टेशन का दृश्य भी काफी भयावह था। हर कोई अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था। लोग दर्द और तड़प के कारण रो रहे थे, लेकिन इन सब के बीच ग़ुलाम दस्तगीर ने अपने कर्तव्य को वरीयता दी और लोगों की जान बचाई।
भोपाल गैस हादसे के नायकों पर हाल ही में एक वेब सीरीज भी रिलीज़ की गई है, जिसका नाम है "द रेलवे मैन", जिसमें आर माधवन, के के मेनन, बाबिल खान, दिव्येंदु शर्मा जैसे अभिनेता नज़र आये हैं।
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