बेहतर

गजल

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24 May '24
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तन्हाई के धागे से खुद को बुनना बेहतर है

सब की सुनते रहने से अपनी सुनना बेहतर है


 

सागर के मंथन से भी कितने रत्न उपजते है

मन से मानक उपजेगें मन का मथना बेहतर है


 

बेकारी बेकार करे खाली मन शैतान गढ़े

कुछ भी ना करने से तो कुछ का करना बेहतर है


 

शब्द सभी मे जादू है कितने मतलब गढ़ते है

अमृत हाला सब इनमे इनको गुनना बेहतर है


 

हाथ सितारे ना आये इसमें उनका दोष नही

नभ को ताने देने से सर को धुनना बेहतर है


 

गुल की गुल कारी है  ना महके बेमानी होगी

साथ हवां के खुशबू का सच मे घुलना बेहतर है


 

घर से निकलो पौ फटते ओर दरख्तों को चूमो

इन रिश्तों से सचमुच में मिलना जुलना बेहतर है


 

मत ज्यादा अम्बार लगा कंकर पत्थर के लाखो 

राजहँस बन थोड़े ही पर मोती चुगना बेहतर है


 

इतना जानो जग वाले किरचें नही सहेजे है

टूटे लाखो बार मगर फिर से बनना बेहतर है


 

पर दोषों की गणनाएँ खूब लुभाये है लेकिन

खुद पर खुद की उँगली का सच मे तनना बेहतर है




 

मुकेश सोनी सार्थक

Category:Literature



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Written by Mukesh Soni