भिखारी का आशीष

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27 May '24
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भिखारी का आशीष 

 

कहां जा रहे हो, फटे हाल

धूमिल तन और बिखरे बाल

हाथ में एक कटोरा चमकीला

ओढ़ के चिथरे और जेब ढिला

जितनी लंबी दुख की लकीर

उतनी लंबी मुस्कान फ़कीर

हार नहीं मानता तिरस्कार से

चाहे गुस्से दो या प्यार से

ले लेगा वो चाहे दस या बीस

लेकिन देगा हजार आशीष

लेकिन मिल जाए अगर साधन रोजगार का

तो बन जायेगा स्थायी हकदार इस प्यार का

 

बिंदेश कुमार झा

Category:Poem



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Written by BINDESH KUMAR JHA

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