जादूगर
एक नज़र थी
जादूगर सी
उठती थी झुक जाती थी
एक आवाज़ थी मनमोहक सी
सीधा दिल तक जाती थी
गीत , ग़ज़ल , नज़्म ,शायरी
ये सब उसको भाता था
छन्दों पर फिर छंद बनाना
बड़ा बखूबी आता था
लिख दू कोई ग़ज़ल मैं उसपर
या तस्वीर मैं ढालू मैं
कोरे कागज़ पर शब्द उकेरू
या रंगों से सजा दू मैं
उसे जानकार इतना जाना
शब्द बहुत ही सस्ते है
रंगों में वो बात नहीं
सब उसके आगे फीके है |
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