गुनाहों का पता पूछा
गुनाहों के बाजारों में
नहीं ऐसा मिला कोई
बता दे जो इशारों में
हकीकत छुप गई उनकी
भरे पूरे उजारों में
कि मातम छा गया अब तो
गलियों में चौबारों में
नाव घिर गई अपनी
भँवर से घिरे किनारों में
कि चलना पड़ रहा अब तो
जलते हुए अंगारों में
ढूंढे से नहीं मिलता
खुशकिस्मत विचारों में
कि अँधेरा छा गया अब तो
रोशन भरे नजारों में
पं संजय शर्मा 'आक्रोश'
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