सुखी जीवन के मूल मंत्र

ऐसे करें इच्छाओं को नियंत्रित

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20 Jun '24
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इंसान के अन्दर अगर संतोष है, तो वह सबसे ज्यादा अमीर है, अगर शान्ति है तो सबसे ज्यादा सुखी है, अगर दया है तो सबसे ज्यादा श्रेष्ठ है, और अगर स्वस्थ है तो सबसे ज्यादा भाग्यशाली है। यह कथन केवल पढ़ने मात्र के लिए नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक ऐसा मंत्र है, जो व्यक्ति की निराशा में आशा का संचार करती है।
इन पंक्तियों को व्याख्या करके लिखा जाए तो यही कहा जा सकता कि व्यक्ति अगर दूसरे के जैसा होने का प्रयास करेगा, तो उसके जीवन में असंतोष का भाव निर्मित होगा। यह असंतोष का भाव ही अभाव का कारण बनता है। और ज़ब यह अभाव का प्रभाव जीवन पर होता है, तब निराशा आती है। कहते हैं जितनी बड़ी चादर होती है, उतने ही पैर पसारना चाहिए यानी आपकी जितनी आय है, उतने में ही काम चलाना चाहिए। अगर आप अपनी आय से अधिक खर्च करते हैं, तो जीवन में कई प्रकार की समस्याएं बिना बुलाए आ जाएंगी। दुनिया में कई व्यक्ति हैं, लेकिन सबके काम अलग अलग प्रकार के हैं। जैसे एक कक्षा के सभी विद्यार्थी आगे चलकर एक जैसे अधिकारी या कर्मचारी नहीं बनते, उनमें से कोई कलेक्टर बनता है, तो उन्हीं में से कोई चपरासी भी बनता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि युवा पढ़ाई के समय परिश्रम करता है, उसे बाद में आराम मिलता है और जो पढ़ाई के समय लापरवाही करता है या मौज मस्ती करता है, उसे बाद में परिश्रम करना पड़ता है।
कहते हैं जीवन में दो अवस्था होती हैं। व्यक्ति के जीवन में अच्छे दिन भी आते हैं और बुरे दिनों का भी सामना करना होता है। बुरे दिन यानी अभाव यानी केवल परिश्रम। युवा अवस्था परिश्रम करने की होती है। इस समय परिश्रम नहीं किया तो भविष्य में आपको परिश्रम करने के लिए तैयार रहना ही होगा। अगर आपका दस रुपए में पेट भर जाता है तो उसके लिए पचास रुपए व्यय करने की इच्छा करना उचित नहीं। इसलिए कहा जाता है, संतोष जीवन का सबसे बड़ा धन है। जिसके पास संतोष है, वह सबसे बड़ा अमीर है। क्योंकि व्यक्ति की इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता। आज एक इच्छा पूरी हुई तो कल दूसरी इच्छाएं पैदा हो जाएंगी। एक बात जरूर ध्यान रखना चाहिए कि भगवान का दिया हुआ कभी अल्प नहीं होता। हमारे इच्छाएं उसे अल्प बना देती हैं।
इसी प्रकार अशांत मन दुख को बढ़ावा देता है। जीवन में जितने भी तनाव आते हैं, उसके पीछे का कारण मन की अशान्ति ही है। कहते हैं हमारे मन के किसी कोने में सुख और दुख दोनों ही विद्यमान रहते हैं। आशक्ति अशांति लाती है। वर्तमान में अशांत मन को शांत करने के लिए व्यक्ति अनेक प्रकार के प्रयत्न कर रहा है, लेकिन उसे शान्ति नहीं मिल रही। उसके जीवन में भटकाव है। स्थिरता को वह भूल चुका है। इससे निवृति के लिए योग का सहारा लेना पड़ रहा है। अगर मन की शान्ति चाहिए तो सबसे पहले अपने विचारों को सात्विक करना होगा। ऐसा करने से सकारात्मक दिशा का बोध होगा, जो जीवन को सार्थकता प्रदान करेगा। ऐसा करने के लिए आपको अपनी दिनचर्या को ठीक करना होगा। यह जीवन को व्यवस्थित करेगा। इस दिनचर्या में ध्यान साधना को भी शामिल करें। इसके साथ किसी न किसी मंदिर अवश्य जाएं। जितनी देर मंदिर में रहेंगे, उतने समय तक आपका चिंतन शुद्ध प्रवाह पैदा करेगा, आपके मन को शान्ति मिलेगी और आपको अंदर से सुख की अनुभूति होगी।
अपने मन को निर्मल बनाने के लिए आप दूसरों के दुख को महसूस कीजिए। आपके अंदर दया का भाव होगा तो आप एक गरीब व्यक्ति का हौसला बढ़ाने का कार्य कर सकते हैं। आज व्यक्ति को “मैं” ने घेर लिया है। यह ‘मैं’ अहंकार लाता है। हमको मैं से हम की तरफ कदम बढ़ाना होगा। ज़ब ‘हम’ का बोध होगा तो यहीं से आपको समाज भी अपना दिखाई देगा। यह वास्तविकता है कि हम अकेले नहीं हैं, हम एक बड़े समाज के हिस्सा हैं। आपकी पहचान समाज ही कराता है। लेकिन आज का व्यक्ति समूह में जीना नहीं चाहता। अगर समूह में जिएगा तो उसे हमेशा यह अहसास होगा कि संगठन में ही शक्ति है। अकेलापन व्यक्ति को कायर बनाता है।
उपरोक्त बातें एक मंत्र ही हैं। इसके अनुसार जीवन को जीकर देखिए, आपको एक ऐसी सुखद अनुभूति होगी, जिसकी आपको तलाश है। तो आज ही इस दिशा में कदम बढ़ाईए, आपके जीवन में एक नवीन आशा का संचार होगा।
 

Category:Personal Development



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Written by Suresh Hindusthani

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