गुमनाम शहर की गलियो में फिरता हूँ आवारा बनकर
जी करता है उड़ जाऊँ कलियों का भँवरा बनकर
मंजिल न मिली मुझको फिर भी देखो बंजारा बनकर
मैं भी रहना चाहता था किसी की आँखों का तारा बनकर
इक दिन खाक में मिल जाऊंगा देखो बेचारा बनकर
पर मुझको भूल न जाना यारों देखूंगा तुमको तारा बनकर
पण्डित संजय शर्मा
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