और औरतों कैसी हो ?,
आज फिर मन किया बात करने का तो कर लिया
तो इन दिनों महसूस किया ,.....
भाई-बहन, देवरानी ,जेठानी व अन्य कई रिश्तों में हम अक्सर ये कहते सुनते पाये जाते हैं कि हमारे साथ तो ऐसा हुआ था उसको तो बहुत छूट मिली।
जैसे कि " देवरानी को तो 21 साड़ी ,सूट,मिडी,गाउन मिलाकर चढ़ा, मेरे समय तो 11 साड़ी ही चढ़नी थी।,अम्मा जी ने साफ मना कर दिया था सलवार सूट के लिए और अब तो जींस पैंट, फ्राॅक तक पर कुछ न कहा।"
उसको तो हीरे की अंगूठी सगाई में पहनायी गयी ,मेरी तो सोने की ही थी ,उसको इतना गहना ... .,उसको सुबह देर तक सोने की छूट।खाने ,पहनने ,नाचने ,गाने, पार्टी की छूट ।मेरे समय तो बड़े कड़े नियम थे ।
ऐसे ही भाई-बहन को लगता मैं तो जब पढ़ने जा रही थी तो चाचा ने हाॅस्टल भेजने सख्त मना कर दिया था और छोटी को तो विदेश भेज दिया पढ़ने अकेले।मेरे समय तो नियम था शाम 7 बजे तक घर के अन्दर और छोटका तो रात 10 -10बजे तक बाहर रहता उसके लिए नियम बदल गया।
और नन्द भौजाई के तो कम्पटीशन की तो बात ही न पूछो ।
इस तरह की करोड़ों बातें हैं जो हम रोज़मर्रा में कम्पेयर कर दुखी हो जाते हैं ।दुखी न भी हो तो एक कसक तो उठ ही जाती है।
लेकिन अगर इसको इस तरह से सोचा जाए कि समय के साथ आये हुए बदलाव हैं ये (हाँलाकि कुछ बदलाव समय नही पर्सन टू पर्सन वैरी करते)😉😉
तो शायद स्वीकार करने में थोड़ी आसानी हो।
अगर हम ध्यान से देखें तो हम खुद महसूस करेंगे कि हर पन्द्रह बीस साल में हममें कुछ बदलाव जरूर हुए होंगे।भले समाज, परिवार, परिवेश, परिस्थितिजन्य मतलब कि कारण कोई भी हो सकता पर परिवर्तन अटल है।
अब आते हैं हम अपनी अपनी बात पर ।लाइक दुनिया ,रिश्तेदारी सब तो दुःख दे ही रहे तो अपने से भी हम दुःख ही क्यूँ लें ? खुश रहना एक आदत की तरह शामिल करो न जीवन में।
औरतों के सन्दर्भ में देखूँ तो विवाह के बाद अति उत्साह में महिलायें ताबड़तोड़ परफार्मेंस देतीं क्या रसोंई, क्या घर ,क्या बाहर ,क्या रिश्तेदारी पर फिर प्रोत्साहन, तारीफ किसी और को मिलते देख मंद पड़ने लगतीं।धीरे-धीरे हमें कोई फ़र्क नही पड़ता कह ध्यान उधर ही रहता कि मेरे साथ तो ऐसा उसके साथ वैसा।
अरे भाई इतना महान बनने की क्या जरूरत है ।विरोध, आपत्ति ये सब व्यवहार में लाओ न आवश्यकतानुसार। इसका मतलब ये नही कि हर जगह तलवार लेकर खड़े रहना है " खूब लड़ी मर्दानी......"
इसका मतलब ये कि माइल्ड आपत्ति से शुरु तो करो नही तो शुरुआत के सालों में देवी बन अचानक से चण्डी का अवतार लेने का क्या फायदा।
महसूस किया, आराम से आपत्ति दर्ज करना अगर आने लगा तो बाद में वो चण्डी स्वरूप कम और कम आक्रामक होगा ,हो सकता है देवी ही बन चलाचली की बेला निपटा लो।
सबसे ज्यादा जरूरत है हमें " ना ,नही ,नो ।" शब्द सीखने की कभी मुस्कुरा कर कहो ,कभी कहे बिना भी डटे रहो ,कभी कह कर भी कर दो ।जिससे प्रवाह, खूबसूरती बनी रहे और कुछ भरता भी न रहे मन में एक दिन फटने को।
बाकी जो अच्छा लगे वो करो ,हमें क्या पर जीवन एक प्रयोगशाला है तो कुछ प्रयोग अपनी अपनी प्रयोगशाला में खुद भी तो करो और जो सफल हो जाये वो साझा करो ।सच मजा आयेगा।हम सब तो वही पुराने प्रयोग करते रहते जो बरसों से चले आ रहे ।भूले भटके जो कोई कर बैठा नया प्रयोग तो हम उसको बता देते कि बहुत बोल्ड है ,तेज है ,स्मार्ट है ,उसका घर-परिवार उसके साथ है वगैरह- वगैरह,।हम थोड़े कर पायेंगे ।इस चक्कर में हम करते नही कुछ अलग बस " बैं बैं बाॅ🐮🐮🐄🐐 "
तो चलो ट्राई करो और न मन हो तो मत करो मोर बला से।
आई लव लेडिज " क्या करूँ ओ लेडिज मैं हूँ आदत से मजबूर " 😉😉😊😘😘
अहम(मैं) से हम की ओर.......😊 #Save जल,जंगल,जमीन #सम्मान>समानता
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