एकतरफ़ आज के युग में जहाँ लोग विज्ञान की ओर ज़्यादा बढ़ रहे हैं कहीं ना कहीं ईश्वर में एक अविश्वास की धारणा भी बढ़ती जा रही है। लोग ईश्वर के अस्तित्व पर भी कई प्रश्न उठाने लग गये है।
क्यों? ...भगवान और आस्था पर सवाल उठाना इतना आसान हो गया है, जबकि हमारा जीवन और पूरा अस्तित्व ही ईश्वर से जुड़ा हुआ है।
इस विषय मैं सबकी अपनी व्यक्तिगत राय और समझ होती है लेकिन कभी- कभी विश्व मैं ऐसी घटनायें घटित होती है जो हमको उस अपार शक्ति के होने का अनुपम आभास कराती है।
विज्ञान की ओर बढ़ना बेहद ज़रूरी है और यही प्रगति की निशानी भी है, लेकिन साथ ही साथ आज के इस युग में उस अलौकिक शक्ति में आस्था रखना भी ज़रूरी है, ऐसा मेरा मानना है और यह मेरी व्यक्तिगत राय है।
नमस्कार प्रिय पाठको, मेरा नाम प्रियंका है और मैं भारत देश के उत्तर में स्थित एक छोटे से राज्य उत्तराखण्ड से हूँ। क्यूंकि मेरी जन्म भूमि उत्तराखण्ड है इसलिये यहाँ के परिवेश की छाप मेरे मन-मस्तिष्क मैं काफ़ी गहरी है। ईश्वर में अपार आस्था पहाड़ी जीवनशैली का ही एक हिस्सा है। मैंने स्नातकोत्तर की डिग्री बायोटेक्नोलॉजी में ली है और मैंने सी. एस.आई. आर की एक लैब में शोधकार्य भी किया है। तो आप ये मान सकते है कि मैंने भगवान और विज्ञान दोनों को ही बहुत करीब से जाना है।
इस सत्य घटना को लिखने और आप तक पहुँचाने का सिर्फ एक मात्र उद्देश्य हैं- आपको एक कदम आस्था की ओर लेकर जाना विज्ञान के साथ।
अभी हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सिलकियरा गाँव में हुई टनल की घटना ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा और कहीं न कहीं ये भी संदेश दिया कि विज्ञान और आस्था का साथ- साथ चलना कभी- कभी बहुत ज़रूरी हो जाता है। कभी- कभी दोनों एक दूसरे के पूरक भी हो जाते है किसी मायने में और अगर साथ में चले तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
हुआ यु कि उत्तराखंड में एक छोटा- सा गाँव है जिसका नाम है सिल्कियारा, जो की उत्तरकाशी जिले मैं है। सन् 2023 की बात है, नवंबर का महीना था, वहाँ पर एक टनल की खुदाई का कार्य जोर- शोर से चल रहा था। ये टनल चार धाम इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। जिस जगह पर काम चल रहा था, उस जगह में वहाँ के क्षेत्र देवता (village deity, बौखनाग देवता) का प्राचीन मंदिर था और जब सुरंग निर्माण का कार्य शुरू किया तो वह मंदिर तोड़ दिया गया। उत्तराखंड क्योंकि देव भूमि है वहाँ कण- कण में देवी- देवताओं का वास होता है, वहाँ की पौराणिक परंपरा यह है कि जब भी कोई निर्माणकार्य शुरू किया जाता है तो सबसे पहले वहाँ के क्षेत्र देवता की आज्ञा ली जाती है और पूरे विधि विधान के साथ भूमिपूजन भी किया जाता है।
सिल्कियारा में टनल खुदाई से पहले ना ही देवता से पूछा गया और न ही कोई पूजा अर्चना की गई। विज्ञान और तकनीक में भरोसा सबसे ऊपर रखा गया और आस्था को कही उतना महत्त्व नहीं दिया गया। टनल का कार्य शुरू हुआ और सब ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन एक ख़बर आई की टनल के अंदर ऊपर से कुछ मलबा गिरा है, जिसके चलते 41 मज़दूर सुरंग के अंदर ही फँस गए हैं। चारों तरफ ये ख़बर आग कि तरह फैल गई। मीडिया, प्रशासन, पुलिस, स्थानीय निवासी सब के सब ग्राउंड जीरो मैं तुरंत पहुँच गए। पहले पहले लगा कि लोगों को सुरक्षित निकाल पाना आसान होगा और प्रशासन लोगों को बाहर निकाल लेगा, पर ये इतना आसान भी नहीं था।
लेकिन दिन बीतते गए और लोग अंदर ही फँस रहे। बड़ी- बड़ी मशीनें, कटर, टनल एक्सपर्ट्स, वैज्ञानिक, रेस्क्यू ऑपरेटर्स सभी देश और विदेश से सिल्कियारा पहुँच गए थे। हैदराबाद से भी रातो रात प्लाज्मा मशीन एयरलिफ़्ट करके ग्राउंड जीरो मैं पहुचाई गई। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ जाकर अच्छी से अच्छी मशीनें भी फेल हो रही थीं। कोई भी राहत कार्य सफल नहीं हो रहा था। ये बड़ी विचित्र- सी बात थी और अब बचाओ कार्य मुश्किल होता जा रहा था। उम्मीद तो थी, लेकिन कहीं न कही धूमिल भी हो रही थी, क्योंकि समय काफ़ी बीत गया था। सारी मशीनें फेल होते देख के सरकार परेशानी मैं आ गई थी।
इसी बीच, तब सिल्कियारा गाँव ने निवासियों ने सरकार और टनल एक्स्पर्ट Mr. Arnold Dix से अपील करी की वहाँ पर स्थानीय देवता को बुलाया जाए, पूजा अर्चना की जाए और जो मंदिर तोड़ने की गलती हुई है अनजाने मे, उसकी माफी माँगी जाए। ग्रामीण निवासियों का मानना था कि टनल आपदा कि मूल वजह यही थी की क्षेत्र देवता नाराज हो गए हैं और उनको मनाए बिना रेस्क्यू ऑपरेशन सफल नहीं हो सकता |
फिर सरकारी तंत्र हरकत में आया, सरकार के मंत्री, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री आए, अंतरराष्ट्रीय टनल विशेषज्ञ आर्नोल्ड डिक्स वहाँ पहुँचे। देवता के सामने माफ़ी मांगी, पूजा अर्चना की और मंदिर बनाने का वचन दिया। सुरंग के शुरुआत में, मुख्य द्वार के समीप एक छोटा- सा क्षेत्र देवता का मंदिर भी बनवाया गया।
जैसे ही पूजा अर्चना खत्म हुई, शांखनाद हुआ, घंटे बजे, उसके बाद मानो, सारे रास्ते अपने आप खुलते चले गए मानों भगवान अब प्रसन्न हो गए हो। आज की तारीक में भी भव्य मन्दिर निर्माण का कार्य वहाँ चल रहा है।
रेस्क्यू का काम फिर से शुरू हुआ, सुरंग में 41 जानें फँसी थीं और 17 दिन तक वह अंदर थे। उसके बाद एक- एक करके 17 दिन के बाद सबको बाहर निकाला गया, ट्रॉली के माध्यम से। 41 मज़दूर सकुशल बाहर आए और ईश्वर को धन्यवाद दिया।
ऐसी हजारों सत्य घटनाएँ है, जब ईश्वर ने खुद के होने के साक्ष्य और प्रमाण दोनों हमें दिए है। खुद चिकित्सा विज्ञान भी बहुत से अनसुलझे पहलुओं के उत्तर ईश्वर और आस्था में ढूँढ़ते है। चंद्रयान जैसे बड़े प्रोजैक्ट्स के समय भी हमने विज्ञान और आस्था का अच्छा समन्वय देखा। चाँद की ज़मीन में जहाँ हिंदुस्तान का चंद्रयान 3 लैंड किया, उस जगह को भी हमने "शिव शक्ति" पॉइंट का नाम दिया। ये हमारी आस्था ही तो है !!!!!
ऐसी कई कहानियाँ है जो निश्चित तौर पर अद्भुत है, अकल्पनीय है, किंतु सत्य है।इस विषय में आपकी क्या राय है आप हमसे नीचे “Comments section” में शेयर कर सकते है।
कहीं ना कहीं उत्तरकाशी की इस कहानी के माध्यम से ये कहावत जीवंत हो गई है 'मानो तो सब कुछ है और ना मानो तो कुछ भी नहीं'। क्या मानना है और क्या नहि, यह निर्णय हम आप पर छोड़ते है|
आस्था उम्मीद को कायम रखती है |आप क्या सोचते हे ?
धन्यवाद।
-Priyanka
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