कुछ प्रश्न

हिंदी कविता



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गिरा है रुपया भी,
और इंसान भी,
तो फिर उठा कौन है?
मरी है संवेदनाएं भी,
और मानवता भी,
तो जिंदा कौन है?
टूटे हैं परिवार भी,
और रिश्ते भी,
इसकी परवाह करता कौन है?
जिंदगी जी रहे हैं,
या बस काट रहे हैं,
इस बारे में सोचता कौन है?
समय बचाने का काम,
करती हैं आजकल मशीनें,
फिर भी यहां फ्री कौन है?
ढूंढ़ने जरूरी है,
इन सवालों के जवाब,
मगर ढूंढ़े कैसे?
हर कोई है व्यस्त,
अपनी धुन में मस्त,
सभी के लब मौन हैं?
खुदगर्जी का ये आलम है,
देश और समाज के बारे में,
भला सोचता कौन है?
किसी को नहीं है,
इन सवालों से मतलब,
इनकी चिंता करता कौन है?

 -काफिर चंदौसवी

Category:Poem



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Written by पुनीत शर्मा (काफिर चंदौसवी)

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