गुमशुदा चेहरा

एक रहस्यमयी कहानी

ProfileImg
21 Jun '24
1 min read


image

शाम का समय था और सूरज धीरे-धीरे अस्त हो रहा था। एक छोटे से पहाड़ी गाँव, बांसवाड़ा में, हर रोज़ की तरह ही शांत वातावरण था। गाँव की गलियों में लोग अपनी दिनचर्या समाप्त कर घरों की ओर लौट रहे थे। लेकिन इस शांत गाँव में उस दिन कुछ अजीब होने वाला था।

मोहन, जो गाँव का डाकिया था, रोज़ की तरह उस दिन भी पत्र बाँट रहा था। जब वह गाँव के आखिरी छोर पर स्थित पुरानी हवेली की ओर बढ़ा, तो उसने देखा कि हवेली के दरवाज़े पर एक अजनबी खड़ा है। वह आदमी काफी घबराया हुआ लग रहा था। मोहन ने उसकी ओर देखा और पूछा, "क्या बात है भाई, यहाँ क्यों खड़े हो?"

अजनबी ने धीरे-धीरे कहा, "मेरा नाम विजय है। मैं शहर से आया हूँ और मुझे इस हवेली के मालिक, हरिओम से मिलना है।" मोहन ने बताया कि हरिओम पिछले कई सालों से गाँव से बाहर गया हुआ है और यहाँ सिर्फ उसकी पुरानी हवेली खड़ी है।

विजय ने गहरी साँस ली और बोला, "दरअसल, हरिओम मेरा बचपन का दोस्त था और मैंने सुना था कि वह यहाँ है। मुझे उससे एक ज़रूरी काम है।"

मोहन ने विजय को अंदर आने का निमंत्रण दिया और दोनों ने हवेली के अंदर प्रवेश किया। हवेली के अंदर हर ओर धूल जमी हुई थी और सन्नाटा पसरा हुआ था। विजय ने मोहन से कहा, "हरिओम ने मुझे एक पत्र भेजा था, जिसमें उसने लिखा था कि वह यहाँ एक बड़े रहस्य की खोज कर रहा है। मुझे उसका चेहरा याद नहीं आ रहा, लेकिन उसके शब्द अब भी मेरे मन में गूंज रहे हैं।"

मोहन और विजय ने मिलकर हवेली की तलाशी लेनी शुरू की। उन्होंने पुराने दस्तावेज़, फोटोग्राफ्स और किताबों के बीच एक डायरी पाई। डायरी हरिओम की थी और उसमें उसके रहस्यमयी शोध का विवरण था। डायरी के आखिरी पन्नों में हरिओम ने लिखा था, "इस हवेली में एक गुप्त कमरा है, जिसमें मेरे सभी सवालों के जवाब छिपे हैं।"

दोनों ने गुप्त कमरे की खोज शुरू की। कुछ घंटों के बाद, विजय को एक संदिग्ध दीवार मिली। उसने दीवार को ध्यान से देखा और पाया कि उसमें एक छिपा हुआ दरवाज़ा है। दरवाज़े को खोलते ही वे एक गहरे, अंधेरे कमरे में प्रवेश कर गए। कमरे के अंदर एक मेज पर एक पुरानी तिजोरी रखी थी।

विजय ने तिजोरी खोली और उसमें से एक दस्तावेज़ निकाला। दस्तावेज़ में लिखा था, "हरिओम की असली पहचान यही है।" विजय ने दस्तावेज़ को ध्यान से पढ़ा और सन्न रह गया। दस्तावेज़ में हरिओम के बचपन की एक तस्वीर थी, जिसमें उसके साथ विजय भी था। लेकिन विजय को अपनी यादों में उस चेहरा याद नहीं आ रहा था।

विजय को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह रहस्य क्या है। तभी उसे याद आया कि हरिओम ने बचपन में एक दुर्घटना में अपना चेहरा खो दिया था और उसके बाद उसने प्लास्टिक सर्जरी करवाई थी। इसलिए विजय को उसका चेहरा याद नहीं आ रहा था।

विजय ने मोहन से कहा, "हरिओम का चेहरा तो अब बदल चुका है, लेकिन उसकी आँखें वही हैं।" उन्होंने खोजबीन जारी रखी और अंततः एक पुरानी फोटोग्राफ

 पाई, जिसमें हरिओम अपने नए चेहरे के साथ था। फोटोग्राफ में एक संदेश भी था, "मुझे ढूंढो, मैं तुम्हारे पास ही हूँ।"

दोनों ने फोटोग्राफ को ध्यान से देखा और समझ गए कि हरिओम अब एक नए नाम के साथ गाँव में ही रह रहा है। उन्होंने गाँव के लोगों से पूछताछ की और अंततः हरिओम को ढूंढ निकाला। हरिओम अब 'रामलाल' के नाम से जाना जाता था और गाँव के एक हिस्से में रह रहा था।

हरिओम ने विजय को देखा और उसे गले लगा लिया। "तुम्हें यहाँ देखकर अच्छा लगा, दोस्त," उसने कहा। विजय ने उसे गले लगाते हुए कहा, "मुझे माफ़ करना, मैं तुम्हें पहचान नहीं पाया। लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ हूँ, हरिओम।"

गाँव के लोगों ने इस रहस्य को जानने के बाद राहत की साँस ली। हरिओम और विजय ने मिलकर गाँव की भलाई के लिए काम करना शुरू किया और उनकी दोस्ती की कहानी गाँव में एक मिसाल बन गई।

 




ProfileImg

Written by surya puri

0 Followers

0 Following