वन की चिड़िया

poetic story

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24 Jul '24
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                             वन की चिड़िया

वन की चिड़िया 

वन में उड़ती

पूछ रही है यह सबसे

किसी ने मेरा मिट्टू देखा ?

देखा उसको किस किस ने 

ओ री मैना , ओ री कोयल 

तुम जल्दी उठ जाती हो 

क्या सूरज उगने से पहले ही 

उड़ चला वो इस वन से ?

सुनो गोरैया, सुनो री बुलबुल

हरा रंगीला तोता है

मेरी आँखों का तारा है 

प्राण से मुझको प्यारा है

अब तुम मुझको बतला भी दो

क्या इस रस्ते वो आया था

डरा डरा वो सहमा - सहमा

क्या तुमने उसको पाया था 

बोली कोयल बोली मैना 

और ये बोला बुलबुल ने

हम न जाने तेरा तोता 

ना ही देखा हे हमने

इतना सुन चिड़िया की आँखे 

पल भर में ही भीग गयी 

हाय रे मिट्टू कहाँ गया तू ?

कैसे खोजू अब तुझको ?

यहाँ - वहाँ देखि फिर चिड़िया 

हाय रे मिट्टू कहाँ हे तू

तेरे बिन सब सूना - सूना 

अब तो मेरी सुन ले तू

डाली पर लगवाऊं झूला

मीठे फल दिलवाउंगी

एक बार को लौट के आजा

तुझको लाड़ लड़ाउंगी 

सुन री चिड़िया , यहाँ छिपा मैं

मुझको खोजे तो जानू

मै तुझको मिल जाऊं तो 

अपनी हार मैं आप ही मानु

मिट्टू की जो सुनी ये बोली 

चिड़िया मन मे झूम उठी

इधर को देखा , उधर को देखा 

फिर झाड़ो की तरफ बढ़ी 

झाड़ो में देखा जब बैठा 

उसने अपने मिट्ठू को 

बोली चिड़िया हार मान लो

अब न छोडूंगी तुझको |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Category:Poetry



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Written by Kanika Mehta

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