स्थाई, पाया पाया मेंरी मां, तुझको लाखों में पाया।
मन्दिर की मूरत है तूझमे, तूझमे। सारा जहां।
एहसान तेरे कितने किस किसको उतारुंगा । 2
आया आया मेरी मां, में तुझसे ही आया।।
पाया पाया मेरी मां, तुझ को लाखों में पाया... 2
1, कहतीं हैं मुझको अपनी, तूं नैनों का तारा।
तूझसे है चमक मेरी, तूं ही है वो सितारा।।
बिस्तर का गीलापन लेके, सुखे में मुझे सुलाया। 2
पाया पाया मेरी मां तूझको लाखों में पाया... 2
2, तेरी लोरी का जादू, आज भी मुझे सुलाता है।
दामन तेरा है ऐसा, हर ग़म से मुझे बचाता है।।
घुटनों के बल चलाथा, तुमने ही चलना सिखाया।2
पाया पाया मेरी मां,तूझको लाखों में पाया... 2
3, मांगता हूं मैं दुआं, मुझको फिर से जहां मिले।
फिर से तेरा ही दामन, ओर तूं ही मां मिले।।
मेरी तो जन्नत तूं है, तुझमें जहां समाया। 2
पाया पाया मेंरी मां तुझको लाखों में पाया।2
लेखक, हनुमान सिंह
Karam pardhan kalam
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